जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है

जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है, तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो....


इस कविता में कवि की धर्मपत्नी उन्हें शादी की album दिखा रही है